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Monday 13 June 2016

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Guru gaddi divas sant dr. gurmeet ram rahim singh ji insan 23-september 1990

23 September – संत गुरमीत राम

रहीम सिंह जी इन्सां के गुरुगद्दी दिवस ,
जैसा हम चाहते थे “बेपरवाह मस्ताना जी ने उससे भी 

कहीं गुना अधिक गुणवान (सर्वगुण संपन्न) नौजवान 

हमें ढूंढ कर दिया है । यह वचन परम पिता जी ने हजूर

 पिता जी के बारे में आश्रम के सभी सत ब्रहमचारी सेवादारों के बीच गुरुगद्दी बख्शीश करने

 (23 September 1990) 

से करीब दो दिन पहले अपने पवित्र मुख से फरमाए 

और किसी की जरुरत नहीं रहेगी । हम उन्हें ऐसा बब्बर

 शेर बनायेगे कि मुंह तोड़ जवाब देंगे। पहाड़ भी अगर 

इनसे टकराएगा तो वो भी चूर -चूर हो जायेगा ।

हमने इन्हें अपना स्वरुप बनाया है। यह वचन मान लेना 

है। अगर हमारा ये वचन मान लिया तो हम इसे तुम्हारी 

सर की कुर्बानी मानेगे हमारा ये वचन मान लेना है ।

डेरा सच्चा सौदा में बड़े पुराने सत ब्रहमचारी सेवादार भाई 

मोहन लाल जी ने बताया की परम पिता जी ने अपने ये 

वचन तीन बार जोर देकर दोहराया की “वचन मान लेना 

है” परम पिता जी ने ये भी होसला देते हुए फ़रमाया की 

“हम अभी कहीं नहीं जा रहे ,हम तुम सबके सामने,तुम 

सबके साथ रहेगे । अब जाओ और गुरुगद्दी रसम 

पिताजी के नाम गुरुगद्दी बख्शीश से लगभग तीन महीने

 पहले ही कर दी थी । वसीयत पर आमतौर पर ये ही 

अभिप्राय होता है की ‘बाद में’ लेकिन पिताजी ने 

वसीयत 

लिखवाने वाले अपने उन खास सेवादारो को ये तागीद

 विशेष तोर पर की थी कि वसीयतनामा में ये शब्द जरुर

 लिखवाए की “डेरा ,नकदी , पैसा-पायी,धन ,ज़मीन 

जायदाद और डेरे का सब कुछ आज से ही “गुरमीत सिंह

 ” जी का है। रूहानियत तो रूहानियत ही है जो कि 

अपनी जगह है और जिसका कोई सानी नहीं यानी इसके मुकाबले में कोई और चीज नहीं है । और यह

 वास्तविकता पिताजी के इन्ही वचनों से ही स्पष्ट होती 

है की। ये पारिवारिक वसीयत नहीं है ये कोई और चीज है

 “परम पिता जी ने ये वचन उस समय फरमाए जब आप

 जी ने गुरुगद्दी की प्रक्रिया के प्रति जुलाई १९८९ से हर

 महीने लगातार सेवादारो से चल रही मीटिंग में अपने 

अपने स्तर पर किसी योग्य सेवादार का नाम देने के लिए

 जोर देकर कहा कि “इतनी मीटिंग आप ने कर ली है 

लेकिन अभी तक किसी का नाम सामने नहीं आया ।

 नाम जरुर दे । चाहे मीटिंग में सामने खड़े होकर सब के

 सामने कहे या लिखित तोर पर हमें दे दे ।डेरा सच्चा

 सौदा की गुरुगद्दी के उत्तराधिकारी का चयन हम आप

 सभी की राय सलाह मशवरा करने के बाद ही करना 

चाहते है । पूजनीय शाह सतनाम जी के इन वचनों के 

तहत सेवादार भाइयो ने लिखित तोर के रूप में शहंशाही 

परिवार से जुड़े हुए एक दो शख्सियतो के नाम दे दिए 

और इस बात पर पिताजी ने सेवादारो को समझाया की

 “नहीं भाई ! यह कोई हमारी निजी पारिवारिक जायदाद 

नहीं है ,ये रूहानी ताकत किसी काबिल को ही दी जाएगी 

,ये विषय है रूहानियत का जिसका दुनिया में किसी भी 

चीज ,किसी भी वस्तु या किसी भी प्राणी से तुलना नहीं 

हो सकती परन्तु वसीयत इसलिए ताकि बाद में किसी को

 भी ऊँगली उठाने की गुन्जायिश ना रहे या कोई झगडा 

झमेला या कोई बवाल गुरुगद्दी को लेकर पैदा ना हो।

 वर्णनिये की “शाह मस्ताना जी ने परम पिता जी को 

अपना उताराधिकारी घोषित करते समय खूब 

ठोक बजाकर गुरुगद्दी बख्शीश करी थी पुरे शहर में जुलूस
 

भी निकलवाया कि डेरा सच्चा सौदा में मस्ताना जी के गुरुगद्दी के वारिस परम पिता जी शाह सतनाम जी 
महाराज जी है यानि रूहानियत के नजरिये से गुरुगद्दी 

बख्शीश की ।
मस्ताना जी ने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी थी ।

 समस्त साध संगत के सामने यह गुरुगद्दी बख्शी थी ।

 डेरा सच्चा सौदा में तीन मंजिली गोल अनामी गुफा 

परम पिता जी के लिए तैयार करवाई और खुद साथ 

चलकर पिता जी को उसमे सुशोभित किया और यह 

वचन भी फ़रमाया की “ये गुफा सरदार सतनाम जी को 

इनाम में देते है यहाँ पर रहने का हर कोई अधिकारी नहीं 

है जैसे मिस्त्री ने इसकी मजबूती के लिए तीन बंद लगाये

 है हम भी इनके ऊपर तीन बंद लगाते है ना ये हिल सके 
और ना ही इन्हें कोई हिला सके । दुनिया की कोई भी 

ताकत इन्हें हिला नहीं सकेगी “ये सब साध संगत के 

सामने हुआ और सब ने इसे अपनी आँखों के सामने देखा

 और खुद कानो से भी सुना । लेकिन काल की भी चींटी 

की तरह तरेड ढूंढता है । उस समय ये कमी रह गयी कि 

दुनियावी तोर पर ये है भी जरुरी ।परम पिता जी ने यह

 भी वचन फ़रमाया की हम नहीं चाहते कि गुरुगद्दी को 

लेकर बाद में कोई बवाल खड़ा हो,हम ऐसा पक्का काम 

खुद अपनी हाथों से,अपनी मोजुदगी में करेगे जो आज 

तक किसी ने नहीं किया हो और शायद ही ऐसा कोई कर 

सके। जब हम सब कुछ अपने होशो हवास में और सब 

कुछ अपने हाथों से करेगे तो किसी को क्या ऐतराज हो

 सकता है “और परम पिता जी ने बिलकुल वैसा ही कर

 दिखाया ।
परम पिता जी ने 

निश्चित दिन यानि २३ सितम्बर १९९० को समस्त साध

 संगत के सामने अपने वचनों के अनुरूप डेरा सच्चा 

सौदा
 की पवित्र मर्यादा के अनुसार हजूर पिता जी को शहंशाही

 स्टेज पर अपने पवित्र कर कमलो से चमकदार फूलों का

 गले में हार डाला और देसी घी के हलवे का अपने रहमो

 कर्मो से अनामी धाम का प्रशाद दिया । परम पिता जी 

इन्हें अपना उतारधिकारी घोषित करते हुए साध संगत के

 नाम निमन के अनुसार अपना हुकुमनामा भी पढवाया 

कि ” संत गुरमीत जी” को जो शहंशाह मस्ताना जी के

हुकुम से बख्शीश की गयी है वह सत्पुरुष को मंजूर थी 

इसलिए
१. जो भी इनसे ( पूज्य हजूर पिता जी से) “प्रेम करेगा 

वो मानो हमारे से प्रेम करता है “।

२.जो जीव इनका हुकुम मानेगा वो मानो हमारा हुकुम 

मानता है ।

३. जो जीव इन पर विश्वास करेगा वो मानो हमारे पर 

विश्वास करता है।

४ . जो इनसे भेदभाव करेगा वो मानो हमारे से भेद भाव करता है ।

५. ये रूहानी दौलत किसी बाहरी दिखावे पर बख्शीश नहीं 
की जाती , इस रूहानी दौलत के लिए वो बर्तन पहले से 

ही तैयार होता है जिसे सतगुरु अपनी नजर मेहर से पूर्ण

 करता है और अपनी नजर मेहर से उनसे वो काम लेता 

है जिसके लिए दुनिया वाले सोच भी नहीं सकते।


एक मुसलमान फकीर के वचन :-

“विच शराबे रंग मुसल्ला ,जे मुर्शिद फरमाए !

वाकिफ कार कदीमी हुंदा गलती कड़े ना खावे!!
६. यह सब आपके सामने हुआ। शहंशाह मस्ताना जी के 

खेल उस वक़्त किसी के भी समझ नहीं आया । जो 

बख्सिश मस्ताना जी ने अपनी दया मेहर से की उसको

 दुनिया की कोई ताकत हिला डुला नहीं सकती । जो जीव 
सतगुरु के वचन पर भरोसा करेगा वह सब कुछ पायेगा ।

 मन आपको मित्र बनाकर धोखा देगा इसलिए जो प्रेमी 

सतगुरु के वचन सामने रखेगा मन से वो ही बच सकेगा

 और सतगुरु सदा उसके अंग संग रहेगा।

बेशक दुनिया के हिसाब से देखा जाये तो २३ साल की उम्र 

अभी

 खेलने कूदने की होती है और यह भी समझने की

 बात है की इस उम्र में तो माता पिता भी अपनी 

जिम्मेर्दारियों से अपने बच्चो को मुक्त रखते है यानि की
 
परिवार की जिम्मेर्दारियां भी उन पर डालना नहीं 

चाहते ।लेकिन पूज्य पिता जी की विलक्षणता का कोई

 नाप तौल नहीं है। हजूर पिता जी ने खेती बाड़ी का

ज्यादा तर काम ८-१० वर्ष की आयु में ही अपने कंधो पर

 ले लिया था पूज्य बापू जी को बिलकुल निश्चिन्त कर 

दिया था और साथ में पदाई भी चलती थी और खेलो में

 भी बहुत जो शोर से भाग लेते थे ,कहने का मतलब यह

 की वो अल्लाह राम अनजान नहीं कि अपना इतना बड़ा 

काम यानी दो जहानों की जिम्मेर्वारी हजूर पिता जी को 

इतनी छोटी आयु में दे रहे थे यह सब कुछ तो पहले से ही
 
लिखा हुआ था !

परम पिता जी ने गुरु गद्दी बख्शीश की ऐसी पक्की 

कार्यवाही की कि ज़रा भर भी कोई शंका किसी शंका वादी

 के लिए नहीं छोड़ी । “अब हम जवान बन कर आयेगे ”

 पूजनीय परम पिता जी ने २३ सितम्बर १९९० को सारी 

साध संगत के समक्ष अपने उपरोक्त वचन को स्पष्ट

 करते हुए फ़रमाया कि “प्रकृति की नियमो को तो बदला 

नहीं जाता ,अगर बुजुर्ग बॉडी में हमें देखना है तो हम 

आपके सामने बेठे है हमें देख लो और अगर हमें नौजवान
 
बॉडी में देखना है तो इन्हें देख लो (पूज्य हजूर पिता जी 

की तरफ इशारा करते हुए )ये हमारा ही स्वरुप है। पूज्य 

पिता जी ने अपनी प्रकट स्वरूप में लगभग सवा साल 

(१५ महीने ) साध संगत के समक्ष विराजमान रहे ।

मालिक की दया मेहर से अब गद्दिनाशिनी को २१ वर्ष 

पुरे
 
हुए है और मात्र इन २१ वर्ष में हजूर पिता जी की 

रहनुमाई में डेरा सच्चा सौदा का हर तरफ विकास हुआ है

 जो अपने आप में मिसाल है पवित्र कार्य ज्यों का त्यों तूफ़ान मेल रफ़्तार से जारी है।

चाहे रूहानियत का छेत्र हो या मानवता की सेवा का 

उद्देश्य से किया जा रहा सामजिक और परमार्थी कार्य 

, डेरा साचा सौदा ने तरक्की करते हुए सब बुलंदियों को 

छुआ है ! अगर बात करे आश्रम में साध संगत को 

उपलब्ध करायी जा रही सुविधाओं की, तो यह भी अपने 

आप में उल्लेखनीय है ,मालिक के रहमो कर्म से चारो 

और साध संगत का प्यार ठाठे मार रहा है

चार करोड़ से भी आज ज्यादा साध संगत पूजनीय हजूर 

पिता जी से नाम लेवा है और कुल मालिक की दया मेहर 

रहमत से दिन ब दिन बढती ही जा रही है। मालिक से ये 

ही प्रार्थना और कामना करते है कि आपका रहमो कर्म यूं 

ही बल्कि इससे से भी दिन दूनी रात चोगनी बल्कि कई 

गुना बढ़ता जाये जी और सारी सृष्टि पर “एक ही नाम

 “पूजनीय परम पिता जी के पवित्र नाम का डंका बजे।

शाह सतनाम ! शाह सतनाम ! शाह सतनाम !

असी जी हाँ मुर्शिद सारे तेरे ही सहारे

मिलदे रहन सदा तेरे प्यार दे नज़ारे

तुसी मिल गए ता रब्ब असी पा लिया

होर कुछ नहीं मांगना

दिल साडा एहो ही सदा मंगदा कि सलामत रहो जी दाता

Source & Editing- derasachasauda